Sunday, August 15, 2010

टिल्लू की मम्मी...

आज भी जब मैं स्त्री संसर्ग के बारे में कल्पना करता हूँ तो मुझे याद आती है टिल्लू की मम्मी....

काम मार्ग पर मेरी प्रथम अध्यापिका थी वो.... पंद्रह बरस का रहूँगा तब मैं.... हल्की मूँछें आना शुरू हुई थीं.... और इसी के साथ हो रहे थे शरीर में अजीबोगरीब परिवर्तन भी.... बच्चे की सी मेरी आवाज में अचानक भारीपन सा भी आना शुरू हो गया था.... यह भी अनुभव किया था मैंने कि किसी युवा स्त्री को देख अब पहले सा सहज नहीं रह पाता मैं.... अजीब अजीब से ख्याल आते थे मन में.... दिन के चौबीसों घंटे, सोते जागते एक अजीब सा तनाव रहता मन में... मैंने बहुत कसा हुआ अधोवस्त्र पहनना शुरू कर दिया था.... हर समय यह चिन्ता भी रहती कि कोई देख न ले मेरे पुरूषांग के तनाव को.... वैसे भी वह बैलबॉटम का जमाना था.... जिसने पहना है उसे पता होगा कि कितना चुस्त होता था वह कटिप्रदेश के आस पास....

हमारे एकदम पड़ोस में रहती थी वो.... दो बच्चे थे उसके.... बड़ी बबली छह साल की होगी और चार साल का था टिल्लू.... टिल्लू के पापा यानि अंकल का अच्छा खासा मोटर पार्ट्स का कारोबार था.... मेरी माता बहुत पसंद करती थी टिल्लू की मम्मी को.... रोजाना घर में बन रहे पकवान का लेन देन होता था दोनों घरों के बीच....

हाँ तो न जाने कैसे ताड़ गई टिल्लू की मम्मी कि लड़का 'तैयार' हो गया है अब.... पक्की 'मैन ईटर' थी वोह.... साथ चलेंगे तो बहुत कुछ बताऊंगा उसके बारे में....

अब सोचता हूँ तो मुझे वह पूरा वाकया पूर्व नियोजित लगता है.... परंतु उस समय की अपनी सीमित समझ से मुझे वह मात्र अकस्मात घटित दुर्घटना लगती थी....

गर्मी की दुपहरी थी वो.... खाना खाकर घर में हम सब ऊंघ से रहे थे.... अंकल दोपहर का खाना खा दुकान जा चुके थे.... अचानक हमारे दरवाजे की कुंडी बजाई उसने जोर से.... ताकि घर में सब को सुनाई दे जाये....
" कामरूप, जरा हमारे घर तो आना जरा.... जरूरी काम है".... कह कर एकदम अपने घर को लौट गई वो....

(क्रमश:)

2 comments:

  1. प्रथम बार आपका ब्लॉग देखा . ब्लागजगत में आपका स्वागत है ... उम्मीद करता हूँ की भविष्य में आपके ब्लॉग में बढ़िया पोस्टे पाठकों को मिलेगीं.

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