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बहुत अलसाया हुआ था मैं.... माता ने जोर की आवाज लगा कर बोला "जा देख कर आ क्या जरूरत पड़ गई है, पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है आखिर".... अनमना सा उठा मैं....
टिल्लू के घर पहुंचा तो देखा दरवाजे में बोल्ट नहीं लगा था.... केवल दरवाजे के पल्ले को भिड़ा सा दिया गया था.... 'टिल्लू'.... जोर से आवाज लगाई मैंने.... भीतर कहीं घर से 'आंटी' (हाँ उसे मैं तब आंटी ही कहता था) की आवाज आई.... "दरवाजा खुला है आ जाओ कामरूप!".... मैं धीरे से घर में दाखिल हुआ.... देखा बबली और टिल्लू बाहर आंगन में कूलर के आगे बेसुध थके हुऐ सोये पड़े थे.... मैं आंगन में जाकर ठिठक सा गया, और वहीं रूक गया....
फिर अंदर से वह बोली, "बाहर ही रूक क्यों गये हो, अंदर आ जाओ सीधे".... बेडरूम के अंदर थी वो.... उस दिन के पहले मैंने कभी उनका बेडरूम नहीं देखा था..... यह दीगर बात है कि बाद में तो अपना अधिकार समझने लगा था मैं उस बेडरूम पर....
बाहर से ही झांका मैंने तो ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी थी वो....खुद को निहारती हुई.... बाहर की चकाचौंध जून महीने की रोशनी के सामने कमरा बहुत अंधेरा लग रहा था.... समझ तो गया मैं कि कुछ लोचा जरूर है आज.... फिर मैंने सोचा जो कुछ है देखा जायेगा.... अंदर गया.... मेरी पदचाप उसने सुनी.... मेरी ओर मुड़ी नहीं वो.... आइने में मेरा अक्स उसे शायद दिख रहा था.... पीठ मेरी ओर किये किये ही बोली "बहुत दिनों के बाद यह पुराना ब्लाउज निकाला है, वजन बढ़ गया है शायद, बटन लग ही नहीं रहे, जरा पीछे से यह बटन लगा देना "....
गर्मी तो थी ही उस समय.... पर अब सोचता हूँ तो यह सुन कर अकस्मात ही कुछ ज्यादा पसीना आ गया था मेरे पूरे जिस्म पर.... हिम्मत बटोर कर मैं आगे बढ़ा... अंधेरा ज्यादा था या मुझे ही लग रहा था... या मेरी घबराहट थी.... परंतु मुझ से बटन नहीं लग पाये उस दिन.... खिलखिला कर हंसी वो.... " रूक , जरा लाईट जला देती हूँ।".... वह मुड़ी और बिजली के बोर्ड की तरफ गई जो दरवाजे के पास ही था.... परंतु उसने दरवाजे का पर्दा भी पूरा लगा दिया....
लाईट जली.... और वह फिर मेरे सामने आई.... परंतु यह क्या.... क्या नजारा था.... जीवन में अनेकों बार फिर ऐसा देखने को मिला मुझे.... परंतु पहली बार की बात ही कुछ और होती है.... बहुत ही गोरी थी वो.... उसका वह दूधिया बदन.... और पहली बार देखने को मिला वह अनावृत नारी वक्ष.... मेरी तो सांस ही मानो अटक गई.... थूक को गटका मैंने, यह निश्चित करने के लिये कि मैं जिन्दा हूँ और यह सब कोई सपना नहीं है....
अपने इस असर का पहले से अंदाजा था उसे.... मुस्कुराती हुई वह मेरे पास आई.... " अरे कैसा गबरू जवान है ? कुड़ी को देखकर शर्मा रहा है।".... जिन्दगी भर अपने को कुड़ी ही मानती रही वो, औरत शब्द से उसे आज भी चिड़ है.... सैंडो बनियान पहने था मैं.... उस ने आकर मेरी बनियान उतारी.... मेरी पीठ, गर्दन, सिर और छाती पर अपने दोनों हाथ फेरे.... मैंने कोई विरोध नहीं किया.... मंत्रमुग्ध सा था मैं उस समय.... आंखें जरूर मेरी नीचे को झुकी हुईं थीं....
मेरी थोडी पर हाथ रख उसने चेहरे को उठाया, " देखने से क्यों शर्मा रहा है ? बड़ी किस्मत वाले को देखने को मिलता है यह सब।".... आंखें खोल कर देखने को मजबूर कर दिया उसने.... और फिर पहली बार मैंने गौर से देखे.... गोल-गोल, मांसल वह दूधिया उभार.... वह गोलाईयाँ.... वह दो स्तन मानो दो छोटे छोटे पहाड़.... अगर कोई जादू से मुझे छोटा कर दे.... तो उनके बीच में खुशी-खुशी सारा जीवन गुजार सकता हूँ मैं कभी भी.... और थोड़े गुलाबी-नीले से वह स्तनाग्र... मैं तो निहारता ही रह गया....
मेरी तंद्रा टूटी तब जब उसने बड़ी ही बेदर्दी से मेरे बाल पकड़े .... और मेरे पूरे चेहरे को अपने वक्ष, गर्दन व बगलों मे रगड़ सा दिया.... तभी पहली बार मैंने अनुभव किया कामोत्तेजित स्त्री की उस मादक गंध को.... जिसका मोल सिर्फ वही जान सकता है जिसने उसे अनुभव किया हो....
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान पैसिव था मैं.... जो कुछ किया उसी ने किया.... फिर वह बोली " चूसेगा इनको?".... छातियों की ओर ईशारा किया उसने.... मैंने हाँ में सिर हिला दिया.... यही वह चाहती थी.... उसने मुझे आलिंगनबद्ध किया .... बरमूदा शार्ट्स के ऊपर से ही मेरे पुरूषांग को टटोला.... तनाव को महसूस किया.... हाथ से उस पर दबाव डाला.... और फिर कहे वो अविस्मरणीय शब्द.... " लगता है तेरी क्लास लेनी पड़ेगी मुझको"....
(क्रमश:)
Kahani Achhi hai par use pura bhi karo. Ek mahine ho gaye yaar.
ReplyDeleteaage bhi badho yaar.
ReplyDeletekahaan atak ke reh gaye????
chalo ab aage kadam badhaao.
kuch likhnaa hain ki nahi.
ReplyDeleteyaa
bakwaas ko khatam samjhun????